खबरसारराजनीति

चुनाव चर्चा – दल बदल की त्रासदी झेलता उत्तराखंड !

आखिर क्या है युवा उत्तराखंड का नसीब।

चुनाव चर्चा – दल बदल की त्रासदी झेलता उत्तराखंड !
आखिर क्या है युवा उत्तराखंड का नसीब।

आगामी 7 नवंबर को उत्तराखंड 21 वर्ष पूरे कर लेगा – शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि व रोजगार में हम पिछड़े हुए हैं। चौथी विधानसभा 2017 -22 ने अब तक तीन मुख्यमंत्री और उन के मुख्यसचिव की कुर्सी जाते हुए देखी है यानि नेता और ब्यूरोक्रेट दोनों भगवान भरोसे हैं। हिमाचल प्रदेश की तरह मजबूत नींव और विकास की बयार बहाने वाला यशवंत सिंह परमार सरीखा नेतृत्व आखिर उत्तराखंड को कब मिलेगा !

कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद कुंजवाल का बयान आया है कि भाजपा के छह विधायक कांग्रेस का दरवाजा खटखटाने को बेताब हैं और सोनिया गांधी जल्दी ही इन दलबदलू नेताओं को कांग्रेस में प्रवेश दिलाने का फैसला लेंगी।

कांग्रेस के दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस दलबदल से बजट सत्र में अपनी सरकार गंवा बैठे थे जब उनके मंत्री और विधायक चार्टेड प्लेन में बीजेपी महामंत्री के साथ दिल्ली उड़ गए।

आज हरीश रावत इन बागी कांग्रेसियों से फरियाद कर रहे हैं – कृपया अपने महापाप की क्षमा मांगकर तो गृह प्रवेश कीजिए।
हरीश रावत और यशपाल आर्य की जुगलबंदी फिलहाल ठीक -ठाक है। यशपाल आर्य उत्तराखंड विधानसभा में आरक्षित 13 अनुसूचित जाति सीटों के लिए प्रमुख दलित नेता हैं – इस के अलावा यशपाल आर्य की कांग्रेस वापसी से भाजपा को कुमायूं मंडल में जोरदार डेंट लगा है।
भाजपा तब कांग्रेस मुक्त भारत अभियान छेड़े हुए थी लेकिन अब उलटा हो रहा है। असम में भाजपा के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल को कांग्रेस से दलबदल कर आए हेमंत बिस्वा शर्मा के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा है।

धीरे – धीरे दलबदल कर आए नेता राष्ट्रीय दलों को अपने इशारों पर नाचने के लिए बाध्य करते जा रहे हैं। चुनाव से ठीक पहले उमेश शर्मा काउ और हरक सिंह रावत की ठसक भी कुछ यही इशारा कर रही है – पता नहीं, हाइकमान से क्या समझौता हुआ है ?

भाजपा सांसद अनिल बलूनी भाजपा में हाउस फुल का बोर्ड चस्पा होने की बात कर रहे थे और अब कांग्रेस मुख्यालय से अपने विधायक को मनुहार – पुचकार कर डैमेज कंट्रोल में जुटे हैं।

उत्तराखंड राजनीति में पांचवी विधानसभा चुनाव से ऐन पहले दलबदलुओं को फांसने और थामने की मुहिम सत्ता के घिनौने पक्ष को उजागर कर रही है।

चुनाव सिर्फ सत्ता हथियाने के लिए प्रचार – प्रोपेगैंडा तक सीमित हो रहा है और लोकतंत्र में दल अब प्राइवेट कंपनियों की तरह व्यवहार कर रहे हैं मानो बिजनेस के लिए नैतिकता की क्या जरूरत है !
—भूपत सिंह बिष्ट

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!