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लोकसभा चुनाव : अब चंद घंटों के फासले पर देश – प्रदेश का भाग्य निर्धारण !

लोकसभा चुनाव का नवनीत बन उभरे गढ़वाल नेता गणेश गोदियाल , उत्तराखंड में कांग्रेस ने फिर संभाला मोर्चा। 

लोकसभा चुनाव : मतदान चंद घंटों के फासले पर देश – प्रदेश का भाग्य निर्धारण !

लोकसभा चुनाव का नवनीत बन उभरे गढ़वाल नेता गणेश गोदियाल , उत्तराखंड में कांग्रेस ने फिर संभाला मोर्चा।

18वीं लोकसभा के लिए उत्तराखंड से पांच सदस्यों के चुनाव के लिए प्रचार अभियान

बुधवार को थम गया है। दो दिन बाद पहले चरण में 19 अप्रैल 2024 को मतदान होगा।

चुनाव का परिणाम 4 जून 2024 को घोषित किया जाएगा। प्रारंभिक तौर पर काफी कुछ

चुनावी तस्वीर भी साफ होती दिख रही है।

उत्तराखंड प्रदेश की पांच सीटों पर 55 प्रत्याशी भाग्य आजमा रहे हैं किंतु मुख्य मुकाबला

कमोबेश सभी सीटों पर सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच ही सिमटता

दिख रहा है।

अलबत्ता हरिद्वार और नैनीताल सीट पर बहुजन समाज पार्टी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की

कोशिश कर रही है तो टिहरी में निर्दलीय बॉबी पंवार ने भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के प्रत्याशियों को

पसीना छुड़ाने की स्थिति जरूर चुनाव अभियान के दौरान बनाई है।

बात करें अल्मोड़ा लोकसभा सीट की तो यहां भाजपा के अजय टम्टा और कांग्रेस के प्रदीप टम्टा के

बीच ही मुख्य मुकाबला है और चुनाव अभियान में यही दोनों प्रत्याशी पूरे क्षेत्र में उपस्थिति दर्ज करवा

सके हैं। कारण यह भी है कि दोनों राष्ट्रीय दल अपना कैडर रखते हैं तो उनके लिए यह संभव भी है

लेकिन क्षेत्रीय दलों या निर्दलीय के लिए संसाधनों के अभाव में संभव नहीं है।

अगर कभी भविष्य में कोई बड़ी लहर या सुनामी आ जाए तो क्षेत्रीय दलों के अनुकूल माहौल बन सकता है।

फिलहाल तो ऐसी स्थिति नहीं है।

 


नैनीताल सीट पर भाजपा के अजय भट्ट और कांग्रेस के प्रकाश जोशी ही मुकाबले में हैं।

यहां बसपा ने अख्तर अली को मैदान में उतारा है। अख्तर अली कितने वोट हासिल करेंगे,

यह बहुत कुछ चुनाव में निर्णायक होगा। वैसे अख्तर अली भाजपा के लिए मददगार ही सिद्ध

हो सकते हैं। कदाचित राजनीति के जानकार मान रहे हैं कि रणनीतिक तौर पर बसपा ने

मुस्लिम उम्मीदवार दिया ताकि सत्ता विरोधी रुझान का लाभ कांग्रेस न उठा पाए।

सर्वाधिक प्रतिष्ठा का विषय बनी गढ़वाल लोकसभा सीट पर मुख्य मुकाबला भाजपा के अनिल बलूनी

और कांग्रेस के गणेश गोदियाल के बीच ही है किंतु जिस तरह गोदियाल ने चुनाव अभियान चलाया है –

उससे भाजपा के रणनीतिकारों को नए सिरे से सोचना पड़ा है।

मनीष खंडूड़ी जब तक कांग्रेस में थे, उन्हें पार्टी का प्रत्याशी माना जा रहा था लेकिन उनके अचानक दलबदलू

होकर भाजपा में चले जाने से मजबूरी में  गणेश गोदियाल को मैदान में उतारा गया।

गणेश  गोदियाल एक बार  चुनाव लड़ने से हाथ खड़े कर रहे थे। चुनाव का नतीजा जो भी रहे लेकिन जमीन

से जुड़े नेता के रूप में उनका कद बहुत ज्यादा बढ़ गया है।

गणेश  गोदियाल अभी तक श्रीनगर विधानसभा सीट के नेता थे – अब वह सम्पूर्ण गढ़वाल के नेता के रूप में

उभर गए हैं। यह इस चुनाव के मंथन से निकला नवनीत माना जा सकता है।

गढ़वाल सीट पर जहां कांग्रेस का 14 में से सिर्फ एक विधायक था, उसका दलबदल भी गणेश गोदियाल के

हौसले को नहीं तोड़ पाया तो यह उनकी पूंजी है।

दूसरी ओर भाजपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी बेशक पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के करीब हैं

लेकिन गढ़वाल से उनका जुड़ाव उस स्तर का नहीं रहा जो अपेक्षित था।

बस यही मौलिक अंतर बलूनी और गोदियाल के बीच है।
हरिद्वार सीट की बात करें तो यह भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए नाक का सवाल बनी है।

मुकाबले को बसपा के मौलाना जमील अहमद और निर्दलीय विधायक उमेश कुमार बहुकोणीय

बनाने के लिए प्रयासरत दिखे हैं। हरिद्वार के संदर्भ में महत्वपूर्ण बात यह है कि पूरे प्रदेश में

सर्वाधिक मुस्लिम मतदाता इसी सीट पर हैं और उनकी संख्या साढ़े छह लाख आंकी जाती है।

बसपा ने यहां पहले भावना पांडे को प्रत्याशी घोषित किया था लेकिन नामांकन से पूर्व ही उनका टिकट

काट कर मुजफ्फरनगर से मौलाना जमील अहमद को लेकर मैदान में उतारा गया।

जमील की आमद के अनेक निहितार्थ गिने जा रहे हैं।

प्रदेश के कुल मतदाताओं के एक चौथाई मतदाता इसी सीट पर हैं और मुस्लिम मतदाताओं पर

कांग्रेस, बसपा, सपा तथा निर्दलीय अपना स्वाभाविक अधिकार मानते हैं। उन मतों का बंटवारा

-किसे लाभ पहुंचाएगा, पाठक सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं।

जहां तक कांग्रेस की बात है तो पहले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस सीट से टिकट

चाह रहे थे लेकिन जब समीकरण बदलते दिखे तो उन्होंने येन केन प्रकारेण अपने बेटे

वीरेंद्र को टिकट दिला दिया। एक दौर तो ऐसा भी आया था जब कांग्रेस के सभी बड़े नेता

चुनाव लड़ने के नाम पर मैदान छोड़ना चाहते थे।  हालत यह थी कि मुझे नहीं, उसे लड़ाइए !

यानी समर में उतरने के लिए मनोबल ही नहीं बचा  था।

बहरहाल अब सभी सीटों पर कांग्रेस मैदान में है तो उसकी वस्तु स्थिति चार जून को ही स्पष्ट

होगी कि 2019 की तुलना में वह मार्जिन को कितना कम या ज्यादा कर पाई है।

वास्तव में  हरिद्वार का चुनाव हरीश रावत लड़ रहे हैं, उनका बेटा तो प्रतीक भर है

इसलिए उन्होंने अपना सर्वस्व झोंक दिया है और यह उनकी प्रतिष्ठा से जाने -अनजाने जुड़

गया है। जिस नेता को प्रदेश की सभी पांचों सीटों पर दिखना चाहिए था वे बीते विधानसभा चुनाव में

लालकुआ की तरह हरिद्वार तक सिमट कर रह गए हैं तो राजनितिक संजीदगी को

समझा जा सकता है।

भाजपा ने निवर्तमान सांसद रमेश पोखरियाल निशंक का टिकट काट कर

त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भरोसा किया तो शायद उसका मंतव्य सांसद की अलोकप्रियता को

कम करना रहा हो लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इस बार कोई लहर वाला चुनाव

नहीं है बल्कि कर्मठता और कौशल प्रदर्शन पर ही इस सीट का चुनाव केंद्रित है।

टिहरी में मुकाबले को निर्दलीय बॉबी पंवार ने दिलचस्प बनाया है। एक तरह से बॉबी ने

चुनाव को धरातल पर ला दिया है। उस नौजवान ने स्थानीय मुद्दों खासकर नौजवानों के

रोजगार के मसले को केंद्र में लाने का प्रयास किया है।

टिहरी सीट के 62 फीसद वोटर अकेले देहरादून जिले में हैं। पहाड़ों में वोटों का बंटवारा बहुत

ज्यादा निर्णायक इस सीट पर नहीं है।

कांग्रेस ने यहां पहले प्रीतम सिंह को मैदान में उतारना चाहा लेकिन पार्टी के अन्य नेताओं की

तरह उन्होंने भी हाथ खड़े किए तो मजबूरी में जोत सिंह गुनसोला के गले में ढोल टांगना पड़ा

लेकिन आखिरकार उन्होंने सभी क्षेत्रों तक पहुंच बनाने की कोशिश जरूर की।

अब माना जा रहा है कि यदि छह माह पहले उन्हें बता दिया जाता कि पार्टी उन्हें मैदान में उतारने

जा रही है तो वे शायद ज्यादा कंफर्ट स्थिति में होते।

इस सीट पर भाजपा ने टिहरी की महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह पर चौथी बार  दांव खेला

लेकिन यह पहला मौका है जब उनके लिए एकदम सहज स्थिति नहीं है।

फिर भी राजशाही के प्रति लोगों की भावना, पार्टी का कैडर और प्रधानमंत्री मोदी का नाम

उनके लिए प्रमुख आलंबन है। फैसला मतदाता को करना है और उसमें मात्र कुछ घंटे शेष हैं।

यह समय मतदाता के लिए चिंतन और मनन का है। देखना यह होगा कि मतदाता किसे अपना भाग्य विधाता

चुनते हैं। इसका आपकी  तरह प्रत्याशी को  भी बेसब्री से इंतजार रहेगा।

  • दिनेश शास्त्री सेमवाल ,स्वतत्र पत्रकार

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