किन्नर समाज के शोषण को चुनौती देती उत्तरकाशी की बानी राणा !
गुरू - चेला और डेरे की कलंक कथा बंधुवा जीवन और अपराध की घिनौनी दास्ताँ ।
किन्नर समाज के शोषण को चुनौती देती उत्तरकाशी की बानी राणा !
गुरू – चेला और डेरे की कलंक कथा बंधुवा जीवन और अपराध की घिनौनी दास्ताँ ।
उत्तरांचल प्रेस क्लब में एक किन्नर की निर्मम पीटाई का विरोध दर्ज कराने
आज दो दर्जन किन्नर एकत्रित हुए ।
किन्नर, ट्राँस जेंडर, हिंजड़ा, शिखंडी, खुसरा न जाने कितने अश्लील संबोधन की
शाब्दिक हिंसा सहते ये मानव रोज नारकीय पीड़ा झेलने को विवश हैं।
पुलिस अपराध नहीं लिख रही, बधाई माँगने गई एक किन्नर को दूसरे किन्नर गिरोह ने
अपहरण कर निर्मम हिंसा का शिकार बनाया। सिर पर घातक चोट पहुँचायी,
टाँग तोड़ दी और बाल काट दिये ताकि उन के इलाके में दुबारा बधाई माँगने
की कोशिश न करे।
किन्नरों का बधाई मांगना दशकों से प्रचलन में है। बच्चे के पैदा होने से लेकर,
विवाह संस्कार ही नहीं अब तो नए घर में प्रवेश के नाम पर बधाई नहीं,
वसूली गिरोह की तरह किन्नर टूट पड़ते हैं।
घर की महिलाओं के साथ दबंगई, अश्लीलता, जादू टोने का शाप से
लेकर हिंसा और बेइज्जती के दम पर देहरादून राजधानी में वसूली का धंधा
बेलगाम चल रहा है।
नगर निगम और पुलिस विभाग ने सनातन परंपरा के बोगस संस्कार का
नियमन करने का कोई प्रयास नहीं किया।
कुछ सौ रूपयों का नेग, राशन और साड़ी – सूट मांगने वाले हिजड़े
अब बेखौफ 21, 51 हजार की वसूली के लिए आम जनता को खून के आँसू
रूला रहे हैं।
पुलिस भले ही किरायेदारों का सत्यापन न कराने के नाम पर पांच सौ रूपये का चालान
मकान मालिक से वसूल रही है लेकिन एक ओटो में बैठकर एक हारमोनियम, एक ढोलक
और दो हिंजड़ों के दल की शादी, संतान उत्पत्ति और मकान निर्माण के नाम पर
11 हजार, 21 हजार और 51 हजार की फिरौती बधाई के नाम पर वसूलने वालों पर
पुलिस – प्रशासन अंकुश लगा पाने में लाचार है।
कुछ मिनटों में ग्यारह हजार ऐंठने का धंधा अब पूरे उत्तराखंड के जी का
जंजाल बन रहा है। रोज की वसूली हजारों के पार होने के कारण बधाई के धंधे में
असंगठित किन्नर भी उतर आये हैं।
सामान्यता किन्नर समाज में गुरू और चेला की परंपरा में है। ये लोग एक डेरा बनाकर
रहते हैं। जहाँ किन्नर चेले शहर में रोजाना बधाई वसूलने निकलते हैं।
शरीर में जननांग के दोष की वजह से तीसरे लिंग के रूप में हिंजड़ों की पहचान है।
इस कारण इनका सारा जीवन मानवीय भेदभाव और तिरस्कार झेलता है।
शिक्षा के प्रचलन से नई पीढ़ी के किन्नर बधाई मांगने और शारीरिक हिंसा से बचने के
लिए डेरे से बाहर दुनिया तलाश रहे हैं।
उत्तरकाशी की किन्नर बानी राणी इंटर पास हैं। एक झूठे सम्मान की रक्षा के लिए
मां – बाप छोड़कर कभी डेरे में आ गई थी । गुरू – चेला परंपरा में बंधुवा मजदूरी और
शारीरिक शोषण की अनेक पीड़ा सही।
एक दिन भय भी शर्म के साथ छूट गया तो अपने किन्नर समाज की विसंगतियों के खिलाफ
आवाज बुलंद करने के लिए मित्रों के साथ पहल की।
माफिया का चेहरा ओढ़े गुरू ने चेलों की शिक्षा और स्वास्थ्य की सुध नहीं ली। लाख रूपया नेग
हासिल करने पर दो हजार बख्शीस मिल जाती है।
गुरू के सोने तक पैर दबाने , गाली – गलौच, मारपीट और शारीरिक शोषण के
नरक से बचने के लिए डेरे और गुरू का साथ एक दिन छोड़ना पड़ा।
नई उम्र की किन्नर अब डेरे की बंदिश से अलग स्वतंत्र रहना चाहती हैं।
रोजी कमाने के लिए कभी विवश होकर बधाई मांगने जाती हैं तो गुरू का माफिया तंत्र
इलाके से बाहर खदेड़ने के लिए तैयार मिलता है।
पुलिस भी अक्सर गुरू के पैसों पर डोल जाती है। गुरू के वसूली तंत्र ने नेताओं और
भाड़े के गुंडों को मारपीट की छूट दे रखी है। हिंसा के काउंटर मुकदमें झेलने और पुलिस
दबाव में शहर और प्रदेश छोड़ने के अनुबंध लिखाये जाते हैं।
बानी कहती है – पुलिस की मारपीट और गुरू की पहुंच के कारण एक दशक तक
चंडीगढ़ और संगरूर पंजाब में शरण लेनी पड़ी। अब अपना देश छोड़कर नहीं जाना है।
नहीं चाहती, उन के साथी हिंजड़े वसूली के लिए बदनाम हो। बधाई और आशीर्वाद
खुशी – खुशी होना हमारे लिए श्रेयकर है।
मैं शेयर बाजार से अपने लिए कुछ पैसे कमा लेती हूं। अपने गढ़वाली समाज की बहनें
भी वार – त्यौहार में पैसों और कपड़ों की मदद करते हैं। माता – पिता भी गाहे बगाहे चिंता
करने लगे हैं।
मगर अपने समाज के गुंडे हमारी पीड़ा को कम नहीं होने देते हैं।
पुलिस और प्रशासन हमारे अधिकार मात्र वोटिंग तक देख रहा है। अप्रैल 2014 में
आये सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार हमें मानवीय संरक्षण, शिक्षा और
रोजगार कहाँ मिल पाया है।
– भूपत सिंह बिष्ट, स्वतंत्र पत्रकार।