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उत्तराखंड राजनीति : कुर्सी एक दावे अनेक !

पांचवी विधानसभा में युवा बनाम खांटी के बीच कितने मुख्यमंत्री दावेदार पहुंचते हैं ?

उत्तराखंड राजनीति : कुर्सी एक दावे अनेक !
पांचवी विधानसभा में युवा बनाम खांटी के बीच कितने मुख्यमंत्री दावेदार पहुंचते हैं ?

उत्तराखंड का युवा नेतृत्व भाजपा के खांटी नेताओं को अब रास नहीं आ रहा है और मुख्यमंत्री कुर्सी की आस में दलबदल कर के आए बड़े नामी गिरामी नेता मुश्किल से प्रांतीय कार्यकारिणी में जगह बना पाए हैं।

यशपाल आर्य का भाजपा छोड़ना मौसम विज्ञानी होने के साथ, पहाड़ी राज्य में दलित राजनीति को परवान चढ़ाना भी है। पिछली बार आसानी से अपनी बाजपुर और बेटे संजीव आर्य की नैनीताल सीट जीत का रिकार्ड यशपाल आर्य के नाम है।यशपाल आर्य उत्तराखंड कांग्रेस के अध्यक्ष, विधानसभा अध्यक्ष और विभिन्न सरकारों में कैबिनेट मंत्री पद पर सुशोभित रहे हैं।

बंशीधर भगत, बिशन सिंह चुफाल ही नहीं त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत, रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा सभी पूर्व मुख्यमंत्री, सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत जैसे दिग्गज – जिन्होंने हरीश रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी से बेदखल कर दिया शायद ही अब युवा नेतृत्व के आगे नत मस्तक रहें।

उत्तराखंड भाजपा मे बगावत का यह दौर जारी रहा तो चुनावी वर्ष में त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाना भाजपा हाइकमान की सबसे बड़ी भूल साबित होने वाली है।

सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत अब बस मुख्यमंत्री पद से कम की चाहत नहीं रखते हैं और उन्हें सुपरसीट करना पहाड़ की राजनीति में असंभव लगता है। यशपाल आर्य ने साबित कर दिया है कि कुमायूं मंडल की राजनीति में भी जूनियर – सीनियर सबसे प्रमुख मसला है और रहेगा।

चर्चा यह भी है कि कांग्रेस का बागी गुट जो पिछले आठ साल से सत्ता में बना हुआ है और एक बार फिर कांग्रेस में घर वापसी चाहता है।
भले ही कुछ समय तक हरीश रावत अपने बगावती साथियों का कांग्रेस प्रवेश कुछ समय के लिए रोक लें लेकिन उमेश शर्मा काउ कांग्रेस के लिए तुरूप का इक्का हैं जो देहरादून की कम से कम तीन सीटों पर किसी भी दल की हार – जीत को साधने में सक्षम हैं।

 

भाजपा के कुछ नेता ज़मीन से जुड़े नेताओं को अपनी गणेश परिक्रमा वाली राजनीति में बाधक मानकर बार – बार उमेश शर्मा को उकसाते आ रहे हैं। देर सबेर उमेश शर्मा सरीखे नेता भाजपा को गुडबाय कर सकते हैं और युवा नेतृत्व की असली चुनौती खांटी नेताओं को अपने अंडर राजनीति करानी की है।

युवा नेता असफल हुए तो पप्पू नाम  अब सभी पार्टियों में आम होने वाले हैं।
— भूपत सिंह बिष्ट

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