केरल भ्रमण – अरब सागर से मुननार हिलस्टेशन तक हनीमून !
इडुक्की जिले में स्थित मुननार अपने खूबसूरत चायबागानों, सदाबहार ब्रिटिश हिल स्टेशन और मनमोहक मौसम हेतु लाजवाब —भूपत सिंह बिष्ट
केरल भ्रमण – अरब सागर से मुननार हिलस्टेशन तक हनीमून !
इडुक्की जिले में स्थित मुननार अपने खूबसूरत चायबागानों, सदाबहार ब्रिटिश हिल स्टेशन और मनमोहक
मौसम हेतु लाजवाब —भूपत सिंह बिष्ट
केरल राज्य की स्थापना 01 नवंबर 1956 में हुई।
ट्रेवनकोर और कोचीन राज्य में मालाबार का विलय 1956 में होने के बाद केरल का नया नाम पड़ा।
आज केरल में शत – प्रतिशत साक्षरता, 14 जिले, आबादी 3.33 करोड़ (2011 अनुसार) और 38,863 वर्ग किमी क्षेत्रफल है।
अरब सागर से घिरा केरल का समुद्र तट वैस्ट्रन घाट और हिल स्टेशन तक फैला है।
कोटायम से मुननार आने के लिए हमें पाला स्टेट हाई वे से अर्नाकुलम की ओर आना पड़ा।
धीरे – धीरे पहाड़ की ओर बढ़ते आलीमाड़ी के इस मार्ग पर हमें आगरा का एक भाई, गन्ने का रस निकालता मिला, जो छह माह पहले आया है।
यह उपक्रम उस की कंपनी का है — जिस ने मुननार तक 32 डीजल से चलने वाली मशीनें लगायी हैं।
तीस रुपये में नींबू डालकर देशी गन्ने का रस बड़ा संतोष दे गया।
आलीमाड़ी और अनानचल के बाजार पार करते हुए अंधेरा घिर आया तो मुननार से पांच किमी पहले हमने होटल तलाशना शुरू कर दिया।
हमें एक हजार मात्र में रात काटने के लिए बढ़िया होम स्टे मिल भी गया — उद्यमी को तब कोरोना वायरस के प्रोपेगेंडा से आर्थिक नुक्सान हो रहा था।
पर्यटकों की आमद घटती जा रही है। अधिकतर होटलियर क्रिश्चियन हैं, खाना लज़ीज और सस्ता है।
सुबह चिड़ियों की चहचहाट से नींद खुली तो अपने आशियाने को बगीचे के बीच पाया – जहां पाईन ट्री को छोड़कर
वृक्षों की विविधता भरी है।
यहां हर तरफ फूलोंको सलीके से उगाना माहौल को खुशगवार बनाता है।
मुननार नगर में घुसते ही ऊँटी की यादें भी ताज़ा हो गई।
टाटा खेल के मैदान में शाम को फुटबाल मैच आयोजन को देखने के लिए बच्चों, महिला व पुरुषों का
जमावड़ा जुटा था।
ये मुननार की उत्साहित खेल प्रेमी नागरिकों की विशिष्ट अभिरुचियों का आभास करा गया।
मुननार की सभी पहाड़ियों में तरतीब से चाय बागान उगाये गए हैं।
अंग्रेजों ने मुननार को चाय की सौगात दी और साथ ही यहां आर्थिक विकास के द्वार खोल दिये।
सड़क,रोप वे,बस्तियां, हास्पीटल, स्कूल,बाजार और जीवन की हर आवश्यकता को आजादी से पहले हासिल
कर लिया गया था।
अंग्रेजों के बाद टाटा ने यहां चाय का बिजनेस संभाला और अब स्थानीय लोगों को साठ प्रतिशत से अधिक की
हिस्सेदारी सौंप दी है।
चायबागान और नगर बाजार में तमिल बाहुल्य महसूस होता है।
एक प्रमुख चाय फैक्ट्री ने रुपये 125- का टिकट लगाकर म्यूजिम में प्रवेश दिया — फिर एक वीडियो दिखाया,
जिस में मुननार की विकास कथा है।
इस फैक्ट्री के प्रचारक ने चाय को संजीवनी बताकर चीन और जापान के लोगों की तरह रोजाना दो ग्राम ग्रीन चाय सेवनकर,
अस्सी साल लंबे जीवन को पाने की गारंटी दी।
ग्रीन चाय से डाक्टर को दूर रखने का नुस्खा भी पर्यटकों को दिया।
मुननार से 25 किमी ऊपर टाप स्टेशन बहुत लोकप्रिय स्थल है और यहीं से तमिलनाडु की सीमा शुरु हो जाती है।
वृक्षों में यूकेलिपटस की तादाद घने जंगल का रुप ले चुकी है।
मुननार के सभी बैराज में पानी का उपयोग पर्यटक बोटिंग के लिए भी करते हैं सो खेती व विद्युत उत्पादन के इतर
राजस्व के लिए भी जल का उपयोग हो रहा है।
चाय के अंतर- राष्ट्रीय निर्यात के लिए दशकों पहले मुननार और कोचीन बंदरगाह के बीच यातायात
सुचारू बना लिया गया था।
उत्तर भारत के नव विवाहित जोड़े भी अब नये हनीमून स्थल की खोज में मुननार तक पहुँच रहे हैं।
मुननार का दर्शनीय रोज गार्डन, फूलों की रंग – बिरंगी दुनिया पर्यटकों में उमंग और उल्लास जगाती है।
— भूपत सिंह बिष्ट