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मुख्यमंत्री धामी का समान नागरिक संहिता कानून क्यूँ है जरूरी !

मुस्लिम महिलाओं में अपनी संपत्ति बचाने के लिए कोर्ट में मुकदमें दायर करने की प्रवृत्ति बढ़ी है।

मुख्यमंत्री धामी का समान नागरिक संहिता कानून क्यूँ है जरूरी !

मुस्लिम महिलाओं में अपनी संपत्ति बचाने के लिए कोर्ट में मुकदमें दायर करने की प्रवृत्ति बढ़ी है।

उत्तराखंड के युवा प्रधानमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता कानून बनाने की पहल

करते हुए एक विशेषज्ञ कमेटी बनायी है।

इधर मुस्लिम शरीयत कानून के चलते महिलाओं को अपनी निजी संपत्ति में पूरे अधिकार के लिए

कोर्ट की शरण में आना पड़ा है।

केरल में तीस साल के निकाह के बाद मुस्लिम वकील शूकूर ने अपनी बीबी शीना से

स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहद अपनी शादी को रजिस्टर्ड कराया है।
ताकि उन की पत्नी और दो बेटियों को उन की संपत्ति हस्तांतरण में आगे कोई बाधा न बन सके।

केरल में कामकाजी और आधुनिक सोच की मुस्लिम महिलायें शरीयत के भेदभाव का

निरंतर विरोध दर्ज करा रही हैं।

मुस्लिम विधि में प्रोपर्टी में महिलाओं को समान हक नहीं है।
पति या पिता की मृत्यु होने पर वारिसान पत्नी और बेटियों को हो रही परेशानी के काफी

मुकदमें कोर्ट पहुंच गए हैं।

अगर किसी परिवार में बेटा नहीं है तो प्रोपर्टी में पति का भाई और उन के बेटे

वारिस बनकर कलह कर रहे हैं।

केरल हाईकोर्ट के एक मुकदमें में पिता की मौत के बाद उत्तराधिकारी बेटी को

चाचा के परिवार से मुकदमा झेलना पड़ रहा है।
बेटी की पीड़ा है कि स्वर्गीय पिता ने अपने दम पर निजी संपत्ति को अर्जित किया है और इस में

किसी का कोई पुश्तैनी हिस्सा नहीं है।

बेटी स्वर्गीय पिता का ऋण चुकाने के लिए कुछ संपत्ति बेचना चाहती है और चाचा परिवार

उस के पिता की संपत्ति को हड़पना चाहता है।

एक अन्य मामले में पति ने साउदी में खून पसीना बहाकर घर बनाने के लिए पैसा भेजा।

घर का निर्माण पूरा करने के लिए बैंक से लोन लिया है।

पति की मौत के बाद लोन चुकाने और बेटियों को पालने में दिक्कत आ रही है सो घर बेचकर

बैंक की किश्तें भरना चाहती है लेकिन शौहर का भाई अड़चन डाल रहा है।
महिला को डर है कि उस की मौत के बाद बेटियों के भविष्य का क्या होगा ?

शरीयत कानून के अनुसार अपना बेटा न होने पर पति की निजी संपत्ति पर

दूसरे भाई का परिवार भी दावा कर सकता है।

खासकर उन मुस्लिम परिवारों को समस्या हो रही हैं, जहां परिवार में सिर्फ बेटियां हैं।

वहां आधी संपत्ति दूसरों के साथ बांटनी पड़ सकती है।
केरल के मुस्लिम धर्म गुरू महिलाओं को पिता और पति की प्रोपर्टी में बराबर हक देने

के पक्षधर नहीं है।

मुस्लिम महिलाओं को वित्तिय जिम्मेदारियां उठाने के काबिल नहीं माना जा रहा है।

इक्कीसवीं शताब्दी में महिलाओं के साथ लिंग भेद को समाप्त करने और समान व्यवहार

के लिए कानूनों में व्यापक सुधार अनिवार्य हैं।

मुस्लिम महिलायें अपनी निजी संपत्ति पर तभी शरीयत कानूनों से संरक्षण पा सकती हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के तीन तलाक कानून के बाद यूनिवर्सल सिविल कोड (समान नागरिक संहिता)

कानून कोर्ट में मुकदमेंबाजी पर लगाम लगाने में भी सहायक रहेगा।
– भूपत सिंह बिष्ट,
स्वतंत्र पत्रकार.

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