बीसवीं और इक्कीसवीं शताब्दी में हिन्दू पुनर्जागरण का प्रतीक श्री राममन्दिर आंदोलन !
उत्तरप्रदेश में श्री राममन्दिर आंदोलन के प्रणेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रचारक दिनेश चन्द्र त्यागी और कांग्रेसी पूर्व मंत्री दाऊदयाल खन्ना।
बीसवीं और इक्कीसवीं शताब्दी में हिन्दू पुनर्जागरण का प्रतीक श्री राममन्दिर आंदोलन !
उत्तरप्रदेश में श्री राममन्दिर आंदोलन के प्रणेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रचारक दिनेश चन्द्र त्यागी और कांग्रेसी पूर्व मंत्री दाऊदयाल खन्ना।
-सर्वेश कुमार सिंह , स्वतंत्र पत्रकार –
भगवान श्रीराम के नवनिर्मित भव्य दिव्य मन्दिर में 22 जनवरी को मन्दिर निर्माण का पहला चरण
496 साल के लम्बे संघर्ष और प्रतीक्षा के बाद यह दिन सम्पूर्ण विश्व का हिन्दू समाज देखने जा रहा है।
इस अवसर को देखने के लिए हिन्दू समाज ने 76 संघर्ष किये और अंत में 40 साल के
राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन तथा न्यायिक प्रक्रिया के बाद सफलता मिली।
श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति का आंदोलन के रूप में संघर्ष कई पड़ाव और चरणों में
होकर आकर बढ़ा।
इसके प्रमुख पड़ावों में धर्म संसदों की भूमिका, कार सेवा, हिन्दू सम्मेलन, राम ज्योति यात्राएं,
राम जानकी रथ यात्राएं, एकात्मता यात्रा शामिल हैं।
इक्कसवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध राम जन्मभूमि की मुक्ति और
विजय के रूप में उपस्थित हुआ है।
एक तरह से कहा जाए कि बीसवीं और इक्कीसवीं शताब्दी का सबसे बड़ा हिन्दू पुनर्जागरण
का का प्रतीक बनकर यह आंदोलन उभरा।
यह आंदोलन प्रारंभ कैसे हुआ, और किसने किया?
यूं तो हम सभी यह भली भांति जानते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति का आंदोलन
विश्व हिन्दू परिषद् ने चलाया और उसे परिणति तक
पहुंचाया है लेकिन, इसके पीछे की प्रेरणा और आरंभ का इतिहास पश्चिम उत्तर प्रदेश के
जनपद मुरादाबाद से जुड़ा है।
समूची दुनिया में चर्चा और ख्याति का विषय बने राम जन्मभूमि आंदोलन की नींव मुरादाबाद नगर में पडी थी।
आंदोलन के सूत्रधार में एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन विभाग प्रचारक
दिनेश चन्द्र त्यागी और दूसरे कांग्रेस के नेता दाऊ दयाल खन्ना थे।
आंदोलन का सूत्रपात वर्ष 1980 में दो प्रमुख घटनाएं हुईं एक मीनाक्षीपुरम् में हिन्दुओं का सामूहिक
धर्मांतरण कराया गया। धर्मांतरण के लिए बाकायदा सभा की गई थी और लाउडस्पीकर लगाकर
सैकड़ों हिन्दू परिवारों को इस्लाम में धर्मांतरित किया गया था।
दूसरी घटना मुरादाबाद अगस्त 1980 का भीषण दंगा था।
यह दंगा सबसे भीषणतम हिन्दू मुस्लिम दंगा था।
तीन महीने तक मुरादाबाद कर्फ्यू की चपेट में रहा था। दोनों समुदायों के अनेक लोगों की जान
दंगों में चली गई थी।
इन दो घटनाओं ने समूचे हिन्दू समाज को चिंतित और व्यग्र कर दिया था।
इसी वातारवण में हिन्दू समाज अपनी सुरक्षा, पहचान और सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा के लिए
सजग भी हुआ था।
यही समय था जब मुरादाबाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस) के विभाग प्रचारक
और हिन्दू जागरण मंच के पश्चिम उत्तर प्रदेश संयोजक के दायित्व का निर्वहन दिनेश चन्द्र त्यागी
कर रहे थे।
श्री त्यागी को रुद्रपुर ( उत्तराखंड) में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिक्षा वर्ग में हिन्दू जागरण मंच
के पश्चिम उत्तर प्रदेश संयोजक की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी।
मुरादाबाद के घटनाक्रम से संघ और अन्य हिन्दू विचार के लोग चिंतित थे। साथ ही कांग्रेस में भी
कट्टर हिन्दू छवि रखने वाले नेताओं ने चिंता व्यक्त की थी। कांग्रेस की इसी धारा के हिन्दू हितों के
संरक्षण का विचार रखने वाले प्रख्यात कांग्रेसी पूर्व मंत्री दाऊदयाल खन्ना भी थे। खन्ना जी के मन में
अपने नगर की सुरक्षा के साथ-साथ हिन्दू समाज की विरासतों के संरक्षण का भी विचार प्रबल
हुआ था। उन्होंने वर्ष 1981 में ही संघ प्रचारक दिनेश चन्द्र त्यागी को आमंत्रित किया।
दोनों के मध्यम मुरादाबाद की स्थानीय स्थिति के साथ-साथ अयोध्या में भगवान राम के ताले में
बंद होने, उनकी मुक्ति की चिंता और काशी, मथुरा के विषयों पर भी चर्चा हुई।
खन्ना जी ने दिनेश जी से आग्रह किया कि यदि संघ इन विषयों पर आगे बढ़े तो वे कांग्रेसी होने के
बावजूद पूरा सहयोग करेंगे तथा संघर्ष में भी साथ देंगे।
इस विषय को संघ में विलक्षण बुद्धि और मेधा संपन्न प्रचारकों में गिने जाने वाले दिनेश त्यागी ने
तत्काल सहमति जता दी। उन्होंने कहा कि इस विषय पर आगे बढ़ा जाएगा और एक आंदोलन शुरु
किया जाएगा। श्री खन्ना और श्री त्यागी के मध्य यह वार्तालाप होने के तत्काल बाद हिन्दू जागरण मंच ने
आंदोलन की रूप रेखा बना ली।
जन्मभूमि मुक्ति की पहली बार चर्चा काशीपुर में !
हिन्दू जागरण मंच ने काशीपुर ( उत्तराखंड) में 22 नवम्बर 1982 को पहला हिन्दू सम्मेलन
आयोजित किया। इस सम्मेलन में तत्कालीन नैनीताल, रुद्रपुर, हल्द्वानी, मुरादाबाद, रामपुर
आदि क्षेत्रों के हजारों की संख्या में हिन्दू समाज के लोग एकत्रित हुए। सम्मेलन के आयोजक
पश्चिम उत्तर प्रदेश संयोजक दिनेश चन्द्र त्यागी ने कांग्रेस नेता दाऊ दयाल खन्ना को भी इस सम्मेलन में
आमंत्रित किया था। भारी संख्या में उपस्थित हिन्दू समाज के समक्ष यहां दाऊ दयाल खन्ना जी ने
ओजस्वी भाषण दिया। उन्होंने अयोध्या में भगवान राम के ताले में बंद होने, उनकी मुक्ति के लिये
प्रयास शुरु करने के साथ-साथ काशी और मथुरा के विषय को भी उठाया।
इस चर्चा पर उपस्थित हिन्दू समुदाय ने भारी उत्साह दिखाया और आंदोलन शुरु करने की मांग कर दी।
यहीं से श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति के लिए आंदोलन के लिए श्री खन्ना और श्री त्यागी को बल मिल गया।
मुजफ्फरनगर के सम्मेलन में संघ की सहमति !
हिन्दू जागरण मंच ने इसी विषय को आगे बढ़ाने के लिए 6 मार्च 1983 को मुजफ्फरनगर में
हिन्दू सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन में प्रमुख रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के
तत्कालीन सर कार्यवाह श्री रज्जू भैया ( प्रो.राजेन्द्र सिंह ), जो बाद में संघ के सर संघचालक बने,
को आमंत्रित किया गया। साथ ही यहां देश के भूतपूर्व कार्यवाहक प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता
गुलजारी लाल नंदा भी आमंत्रित किये गए थे।
सम्मेलन में संयोजक दिनेश चन्द्र त्यागी ने मुरादाबाद के कांग्रेस नेता दाऊ दयाल खन्ना को यहां
राम जन्मभूमि का विषय प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया था।
सम्मेलन में श्री खन्ना ने श्री राम जन्मभूमि की मुक्ति और काशी तथा मथुरा की मुक्ति के प्रश्न
यहां प्रस्तुत किये। संघ के सरकार्यवाह रज्जू भैया ने इन विषयों से सहमति प्रकट की।
किन्तु जब तीनों स्थानों की मुक्ति का प्रस्ताव दाऊ दयाल खन्ना ने प्रस्तुत किया तो
पूर्व प्रधानमंत्री ( कार्यवाहक) गुलजारी लाल नंदा ने असहमति जता दी।
उन्होंने कहा उन्हें यह नहीं बताया गया था कि यहां ये प्रस्ताव आएगा। लेकिन, बाद में रज्जू भैया के समझाने पर
नंदा जी मान गए और तीनों धर्म स्थानों की मुक्ति का प्रस्ताव सर्व सम्ममति से पारित हो गया।
प्रथम धर्म संसद में विहिप ने स्वीकारा आंदोलन !
काशीपुर, मुजफरनगर के बाद हिन्दू जागरण मंच ने अमरोहा, बरेली, सीतापुर, लखीमपुर,
कानपुर में कई हिन्दू सम्मेलन किये। सभी सम्मेलनों में राम जन्मभूमि की मुक्ति का मामला उठता रहा।
यह मुद्दा दिल्ली के विज्ञान भवन में 7 और 8 अप्रैल 1984 को आयोजित प्रथम धर्म संसद में
विश्व हिन्दू परिषद् ने आंदोलन के लिए स्वीकार कर लिया।
दो दिवसीय धर्म संसद में सनातन परंपरा के 76 मत,पंथ, सम्प्रदायों के 558 संत, महात्मा,
धर्माचार्य उपस्थित हुए थे। धर्म संसद का आयोजन विश्व हिन्दू परिषद ने किया था।
यहां भी मुरादाबाद से पधारे दाऊ दयाल खन्ना ने श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति, काशी और मथुरा के
धर्म स्थलों का मुद्दा प्रस्तुत किया। इस विषय पर चर्चा के बाद 8 अप्रैल को धर्म संसद ने
सर्व सम्मत प्रस्ताव पारित करके तीनों धर्म स्थल हिन्दू समाज को सौंपने का प्रस्ताव
पारित कर दिया।
आगे की रणनीति के लिए विश्व हिन्दू परिषद को धर्माचार्यों ने अधिकृत किया तथा आश्वासन दिया
कि धर्म स्थलों की मुक्ति के लिए जो भी आंदोलन होगा और सहयोग की आवश्यकता होगी –
उसमें संत समाज सहभागी होगा।
विज्ञान भवन में आयोजित धर्म संसद के बाद राम जन्मभूमि का मुद्दा देश भर की निगाह में
आया और जन चर्चा का विषय बन गया।
धर्म संसद के बाद श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन करके भगवान राम को ताले से
मुक्त कराने के लिए आंदोलन आरंभ हो गया था।
इस तरह सफलता की परिणति तक पहुंचा आंदोलन मुरादाबाद से शुरु होकर काशीपुर, मुजफ्फरनगर
और नई दिल्ली के अहम पड़ाव के बाद अनेक संघर्ष बाधाओं को पार करते हुए
अब मन्दिर निर्माण के लक्ष्य पर पहुंचा है।
(उप्रससे)