कहानी तालिबान की – राष्ट्रपति अशरफ गनी को काबुल से खदेड़ा !
अशरफ गनी हैलिकोप्टर में नकदी लेकर हुआ फरार, अब गृहयुद्ध की आशंका में जनजीवन हुआ मुहाल।
— भूपत सिंह बिष्ट
भारत के अरबो रूपये के सैकड़ों प्रोजेक्ट सत्ता परिवर्तन से फंस गए हैं।
तालिबान ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी को काबुल से खदेड़ दिया है। 71 वर्षीय अशरफ गनी हैलीकोप्टर में जान बचाकर अज्ञात स्थान के लिए उड़ गए हैं और बताया जा रहा है — पूर्व राष्ट्रपति को हैलिकोप्टर में भार बढ़ने और जगह ना होने से कीमती माल असबाब व नकदी को छोड़कर भागना पड़ा है।
चरमपंथी और आतंकी समाज व सोच में महिलाओं और बच्चों को नारकीय जीवन जीने के लिए विवश होना पड़ा है। एक बार फिर अफगानिस्तान चरमपंथियों के कब्जे में है और अब हथियार, गोला- बारूद के दम पर सत्ता चलायी जानी है। अमन चैन के लिए लोकतंत्र -गणतंत्र या संविधान अब निचली पायदान में रहेगा।
ऐसा माना जा रहा है कि एक मई से अमेरिका ने अपनी सेना को अफगानिस्तान से वापस बुलाना शुरू कर दिया था और तब से कभी भी राजधानी काबुल इस हश्र के लिए तैयार बैठी थी। इस से पहले तालिबान 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज थे और 2001 के 9/11 अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हुए आतंकी हमले में तालिबान को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
अमेरिकी सेना ने आतंकी गतिविधियों के कारण विगत बीस सालों से तालिबान को काबुल की सत्ता से बाहर रखा हुआ था। खुफिया विभाग सूत्रों के अनुसार तालिबान को हथियार, पैसा और मदद देकर अमेरिका के खिलाफ संघर्षरत रखने में पाकिस्तान और चीन का सीधा हाथ रहा है।
अमेरिका की मजबूरी हो गई थी कि अब दो दशक बाद अपनी सेना को पराये देश से वापस बुला ले ताकि अपने देश में नागरिक और सेना के बढ़ते असंतोष को शांत किया जा सके।
भारत में घटी बड़ी आतंकी घटनाओं में कट्टरपंथी मुस्लिम गिरोह का हाथ काबुल – कंधार तक साबित हुआ है। 1999 में नेपाल से हाइजैक इंडियन एयर लाइंस के हवाई जहाज और 1989 में तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती सईद की बेटी रूबिया सईद के अपहरण के तार अफगानिस्तान में दूर तक फैले थे।
अफगानिस्तान से भारत के संबंध तीन सदी पुराने तक याद किये जा सकते हैं। फ्रंटियर गांधी अबदुल गफ्फार खान ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों की खुली मुखालफत की थी। अफगानिस्तान के रिश्ते देहरादून में काबुल भवन और चाय व्यवसाय से लेकर सूखे मेवा आदि, क्रिकेट टीम को अंतर राष्ट्रीय फलक में उतारने, शिक्षा, चिकित्सा , गीत -संगीत- फिल्म और अन्य उद्योग में संबंध मजबूत रहे हैं।
नोबुल विजेता रविंद्रनाथ टैगोर की सुप्रसिद्ध कहानी काबुलीवाला, जिस पर सफल हिंदी फिल्म बनी है — काबुल, अफगानिस्तान के पठान पर आधारित है।
भारत के अफगानिस्तान में शांति प्रयासों के लिए आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक निवेश हमेशा आतंकियों, पाकिस्तान व चीन की आंख में किरकिरी बना रहा। सूत्रों के अनुसार लगभग पांच सौ प्रोजेक्ट में हमारे देश का लगभग इक्कीस हजार करोड़ से अधिक पैसा निवेश है।
वर्षों से तालिबान सीधे पाकिस्तानी सेना के प्रभाव में है सो अब हमारे आर्थिक हित बाधित होने स्वाभाविक हैं। भारत का सिक्ख समुदाय सदियों से वहां धंधा कर रहा है। मेडिकल, शिक्षा और तमाम व्यवसाय में जुड़े भारतीय और तालिबान की हिंसा से बचने के लिए शरण चाहने वाले शरणार्थियों की समस्या भी अब मुंह बाये खड़ी है और सरकार को तत्काल अब इस मोर्चे पर सक्रिय होना है।
विदेश राजनीति के विशेषज्ञ हैरत में हैं कि इतनी जल्दी अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित अफगानी सेना ने बिना लड़े कैसे हथियार डाल दिए। फिलहाल काबुल एयरपोर्ट अमेरिकी सेना के हवाले है और तालिबान विदेशी राजनायिकों के साथ बुरा व्यवहार कर के संयुक्त राष्ट्र संघ और यूरोपियन सेना को फिर से जवाबी कार्यवाही के लिए नहीं उकसायेगा।
यह सच है कि पाकिस्तानी सेना तालिबान द्वारा काबुल फतेह करने पर गदगद है और चीन भी अपनी विस्तारवादी नीति को सफल होते देखना चाहता है।
— भूपत सिंह बिष्ट