भगीरथी – अलकनंदा का समामेलन देवप्रयाग संगम स्थल – पितृपक्ष में तारिणी गंगा मां !
चारधाम यात्रा सीजन में उत्तराखंड के गंगा तट पर श्राद्ध कर्म और तर्पण को जुटते हिंदू अनुयायी।
भगीरथी – अलकनंदा का समामेलन देवप्रयाग संगम स्थल – पितृपक्ष में तारिणी गंगा मां !
चारधाम यात्रा सीजन में उत्तराखंड के गंगा तट पर श्राद्ध कर्म और तर्पण को जुटते हिंदू अनुयायी।
पूरे भारत और विश्व में सनातन धर्म मानने वाले नागरिक इन दिनों पितृ पक्ष में अपने सगे संबंधियों को श्राद्ध – तर्पण के लिए सक्रिय हैं।
इस वर्ष 10 सितंबर से 25 सितंबर तक पितृ पक्ष या सोलह श्राद्ध या महालय पक्ष मनाया जाना है।
परंपरा बनी हुई है – पवित्र नदियों के तट पर अपने स्वर्गवासी माता -पिता और सगे संबधियों को तर्पण प्रक्रिया से स्मरण कर श्रद्धांजली अर्पित की जाए।
कुंभ महा पर्व के अलावा हर दिन गंगा और अन्य नदियों के तट पर पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण पूजा की जाती है।
माँ गंगा को गंगा नामकरण उत्तराखंड के देवप्रयाग संगम स्थल पर मिला है।
देवप्रयाग में गोमुख से आने वाली भगीरथी नदी और बदरीनाथ धाम से आ रही अलकनंदा नदी का संगम ही माँ गंगा का स्वरूप बनता है।
हरिद्वार से लगभग नब्बै किमी दूर देवप्रयाग संगम नगरी है।
गंगा की अध्यात्मिक खोज में पधारे पूर्व – पश्चिम और उत्तर – दक्षिण के धार्मिक विद्वानों ने ही सदियों पहले अध्यात्म नगरी देवप्रयाग को बसाया है।
देश की सभी प्रमुख ब्राह्मण जातियां यहां पूजा – पाठ कर्म में कई सौ साल पहले आकर जुट गई।
देवप्रयाग के सुविज्ञ विनोद कोटियाल का मानना है – गंगा के साथ – साथ बसे समाज ने इस की मूल धारा तक पहुंचने का प्रयास किया होगा।
देवप्रयाग आकर धर्म गुरू माँ गंगा की दो धाराओं भगीरथी व अलकनंदा की ओर बढ़े होंगे तथा इन के मुहाने पर गंगोत्री धाम व बदरीनाथ धाम हमारे धर्मग्रंथों के अनुरूप स्थापित किए गए।
वेद और पुराणों में उल्लेखित केदारखंड व मानसखंड के अध्यात्मिक स्थलों के कारण उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है और लोग यहां सदियों से धार्मिक लाभ व मोक्ष प्राप्ति के लिए आते हैं।
अपने पित्रों के लिए तर्पण देने के लिए हरिद्वार, देवप्रयाग, बदरीनाथ व केदारनाथ आदि उत्तराखंड में श्रेष्ठ स्थल है।
मोदी सरकार ने नमामि गंगे परियोजना के तहद देवप्रयाग के घाटों को संवारा है।
भगीरथी के तट पर स्नान घाट व अंत्येष्टि स्थल विकसित किए गए हैं।
पीने का पानी, स्नान घर, सार्वजनिक शौचालय और भीगे वस्त्र बदलने के लिए महिलाओं के लिए कमरे बनाये गए हैं।
देवप्रयाग संगम स्थल पर पूजा पाठ, स्नान – ध्यान और भगीरथी व अलकनंदा के निर्बाध प्रवाह से उभरती गंगा के दृश्य भक्ति भाव की सृष्टि करते हैं।
देवप्रयाग संगम स्थल से दो सौ मीटर की ऊंचाई पर वैष्णव मत के प्राचीन रघुनाथ मंदिर में भगवान राम की महिमा गायी जाती है।
देवप्रयाग के मंदिर, मकान, झूलापुल और गुफायें उत्तराखंड की पुरातन पंडा संस्कृति की संपन्नता को आज भी अभिव्यक्ति दे रही हैं।
देवप्रयाग में बन रहे नए संस्कृत विश्व विद्यालय, नक्षत्र अध्ययन के लिए वेधशाला, बदरीनाथ धाम यात्रा को देश – विदेश में प्रचारित करते और अपने यजमानों की निर्बाध पूजा पाठ में वर्ष भर सक्रिय पंडा समाज देवप्रयाग की विशिष्ट पहचान हैं।
– भूपत सिंह बिष्ट