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गढ़वाल दर्शन: ग्राम चिंतन अग्रणी क्यार्क !

माँ नंदा का सिद्धपीठ और शिवाला, जहाँ अंग्रेज का स्थापित विद्यालय अब है इंटर कालेज !

गढ़वाल दर्शन: ग्राम चिंतन अग्रणी क्यार्क !

माँ नंदा का सिद्धपीठ और शिवाला, जहाँ अंग्रेज का स्थापित विद्यालय अब है इंटर कालेज !

— भूपत सिंह बिष्ट
नगरों में कुछ फीट के अंदर सिमटी ज़िंदगी को खुली आबो हवा, आंखों को खेत खलियान की हरियाली व तरो ताजगी के लिए – हेम भाई का आभार ना जताना बेमानी होगी।

अर्से बाद शहर की भीड़ से परे गांव प्रवास सफल रहा। यह सुखद अवसर दिया — यूनिवर्सिटी में साथ पढ़े हेम भाई ने, जो आर्कियोलोजी ( पुरातन इतिहास) में गोल्ड मैडल हासिल हैं। कुछ समय रिसर्च और अध्यापन के बाद हेम भाई ने वन पंचायत से जुड़ना जीवन की प्राथमिकता बनायी।

जीवन में उनकी प्रयोगधर्मिता अनूठी रही है – हेम भाई, मानविकी के छात्र रहने के बावजूद आज फोरेस्ट्री विषय की जानकारी में बहुत आगे निकल आये हैं। बड़े -बड़े फोरेस्ट आफिसर भी उन के अनुभव और ज्ञान के कायल हैं।

दूधातोली वन क्षेत्र में हेम गैरोला का विशिष्ट अध्ययन है – इस ग्लेशियर विहीन पहाड़ी से चार सदाबहार नदियों का स्त्रोत है। बारिश के पानी को लंबे समय तक यहां की वनस्पति संजोकर रखती है और धीरे धीरे इस धारा से पूर्वी नयार, पश्चिमी नयार और रामगंगा व अन्य नदियों को बारह माह जलापूर्ति हो रही है।

दूधातोली में अंग्रेजों के रिसर्च को वर्तमान तक चर्चा में रखना सहज नहीं है क्योंकि इस पर आश्रित दुधारू पशुओं को अब चारे में कमी आ रही है। जंगल के हक हकूकों से ग्रामीणों को दूर रखने के प्रयास ने वन विभाग के प्रति लोगों मेंं उदासीनता भरी है।

वन पंचायतों को मजबूत कर वन और लोगों के बीच सामंजस्य बैठाया जा सकता है। वनों के संरक्षण से यह रिसोर्स रोजगार देने में भी अग्रणी भूमिका निभा सकता है। जल व जंगल पर अधिकार को लेकर गैर जरुरी मुकदमे बाजी ने पहाड़ के सोशल ताने बाने में कटुता और आर्थिक विपदा भरी है। वन पंचायत इस ओर भी बड़ी जिम्मेदारी निभा सकती है।


ग्रामीण समाज के सशक्तिकरण में वन पंचायतों की सक्रियता को लेकर हेम भाई ने अपना जीवन खपाया है। कई संस्थाओं ने हेम भाई के इस सामाजिक योगदान को सराहा और पुरस्कृत भी किया है।

विगत तीन वर्षों से हेम भाई अपने पैतृक गांव क्यार्क में हैं — जहां उनका बचपन बीता, प्राइमरी शिक्षा हुई। उत्तराखंड की राजधानी के रुप में उभर रहे गैरसेण में और भुवनेश्वरी आश्रम में सामाजिक विज्ञानी बनकर वर्षों योगदान दिया है।

क्यार्क में बड़े पैमाने पर खेती हो रही है, पोलीहाउस हैं। देशी – विदेशी एनजीओ इस गांव से सहज एप्रोच के लिए जुड़ते रहते हैं – यूनाइटेड नेशन पीस मिशन से जुड़े एक अंग्रेज ने यहां दशकों पहले एक स्कूल खोला था – जो आज इंटर कालेज बन चुका है।

माँ नंदा देवी सिद्धपीठ के लिए भी क्यार्क गांव प्रसिद्ध है। गांव एक शिवालय में माई (सन्यासिनी) पूजा पाठ करती हैं। रेन वाटर हार्वेस्टिंग से लेकर महिलाओं के स्वयं सहायता समूह, पंचायतघर, पुरानी पीढ़ी के विद्वानों ने अंग्रेजों को सोशल मैन्यूल बनाने में सहयोग किया है।

गांव की आबादी में मिश्रित जातियां हैं। माल्टे, आम व केले के पेड़, हरी सब्जियां व तीन फसलें उगाने के लिए जल राशि पर्याप्त है।
सभी गांवों की तरह रोजगार और बेहतर जीवन के लिए क्यार्क से भी पलायन हुआ है।

आज हेम भाई ने रिवर्स पलायन को सच साबित कर दिया है और अपने वन पंचायत कार्यक्रम में सक्रिय हैं। यात्रा के अंतिम चरण में पौड़ी शिखर पर स्थित क्यूंकालेश्वर महादेव दर्शन और मित्र हेम गैरोला के गांव क्यार्क में प्रवास सबकुछ अविस्मरणीय संस्मरण बना है।

पदचिह्न टाईम्स।

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