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गढ़वाली साहित्य, कला और संस्कृति का संगम रहा – जिजीविषा महोत्सव !

महिला अभिव्यक्ति मंच जिजीविषा ने दिखायी - उत्तराखंड संस्कृति की प्रभावशाली झलक।

गढ़वाली साहित्य, कला और संस्कृति का संगम रहा – जिजीविषा महोत्सव !

महिला अभिव्यक्ति मंच जिजीविषा ने दिखायी – उत्तराखंड संस्कृति की प्रभावशाली झलक।

जिजीविषा समारोह में मुख्य अतिथि पूर्व पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी और उत्तराखंड की अपर सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी ने गढ़वाली गीत गाकर सबको भाव विभोर कर दिया।

गढ़वाली भाषा और साहित्य के लिये उल्लेखनीय योगदान करने के लिए जिजीविषा संस्था ने श्रीमती बीना बेंजवाल और रमाकांत बेंजवाल को अभीष्टादर्श दम्पति सम्मान से अलंकृत किया।

संस्था की संस्थापक अध्यक्ष श्रीमती डॉली डबराल ने कहा – गढ़वाली संस्कृति को आगे बढ़ाने और शास्त्रीय नृत्य -गीत- संगीत को प्रोत्साहित करने हेतु जिजीविषा सक्रिय है ।

 

सुप्रसिद्ध भरतनाट्यम गुरु श्री सहज संगल जी ने शिव स्तुति पर अपनी भव्य प्रस्तुति दी।

नृत्यांगना सुश्री अनुष्का चौहान ने थिलाणा आधारित श्री कृष्ण पर भरतनाट्यम प्रस्तुत किया।

कशिश खत्री द्वारा बाजे मृदंग पर कत्थक नृत्य और आरती थापा ने शिव तांडव पर मंत्रमुग्ध नृत्य किया।
आरुषी जोशी व आरुषी तयाल ने भी बेहतरीन प्रस्तुति दी।
श्रीमती सुमंगली नेगी ने अध्यात्मिक मांगल गीत से कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।

गढ़वाली संस्कृति को आगे बढ़ाते हुए श्रीमती अनीता सोनी ने पुराना खुदेड़ गीत ‘सौण कुुयेरी फुर्र फुर्र औंदी’ गीत पर तालियां बटोरी ।

 

इस बार डॉ. ज्योति श्रीवास्तव, सोनल वर्मा, मोहतरमा कहकशां और शशि भूषण को जिजीविषा ने सम्मानित किया गया। ।

श्रीमती संगीता लखेड़ा द्वारा गढ़वाली नृत्य “कोटा को बटन ज्यू ” ने खूब रंग जमाया ।

प्रस्तुति  – राजनीश त्रिवेदी

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